देश में लागू हुआ CAA
सीएए क्या है? नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) का उद्देश्य धार्मिक उत्पीड़न के कारण भारत में शरण लेने वाले व्यक्तियों की रक्षा करना है। यह उन्हें अवैध प्रवासन कार्यवाही के खिलाफ एक ढाल प्रदान करता है। नागरिकता के लिए पात्र होने के लिए, आवेदकों को 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश करना होगा
केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा लोकसभा चुनाव से पहले 11 मार्च 2024 को नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 की अधिसूचना जारी कर दी है। सीएए नियमों का उद्देश्य गैर-मुस्लिम प्रवासियों जिनमें हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई को भारतीय नागरिकता प्रदान करना है
CAA full form-Citizenship Amendment Act.
CAA
सीएए (CAA) का मतलब की नागरिकता संशोधन अधिनियम (Citizenship Amendment Act) – इस कानून के तहत अपने पड़ोसी देश बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को नागरिकता दी जाएगी. दिसंबर 2014 से पहले से भारत में आने वाले छह धार्मिक अल्पसंख्यकों (हिंदू, बौद्ध, सिख, जैन, पारसी और ईसाई ) को नागरिकता दी जाएगी
CAA Bill क्या हैं?
नागरिकता संशोधन विधेयक (CAA Bill) पहली बार 1955 के नागरिकता अधिनियम में संशोधन करने के लिए 2016 में पेश किया गया था।
CAA BILL पारित होने से फ़ायदे –
नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश करने वाले अवैध प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने के लिए पारित किया गया था।
मंजूरी कब मिली?
नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 को संसद की मंजूरी मिल गई थी।यह एक संयुक्त संसदीय समिति के माध्यम से पारित हुआ और 8 जनवरी, 2019 को लोकसभा द्वारा पास किया गया। 17वीं लोकसभा में गृह मंत्री अमित शाह द्वारा फिर से पेश किया गया और 10 दिसंबर, 2019 को पास किया गया। राज्यसभा ने भी 11 दिसंबर, 2019 को विधेयक पास किया।
मुस्लमान CAA का क्यों कर रहे है विरोध?
नागरिक (संशोधन) कानून में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से विशिष्ट धार्मिक समुदायों (हिंदू, सिख, जैन, ईसाई, बौद्ध और पारसी) को अवैध अप्रवासियों के लिए भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है। इसमें किसी भी देश के मुस्लिम धर्म के लोग CAA का लाभ नहीं उठा सकते।
किसको मिलेगा लाभ?
भारत में वैध यात्रा दस्तावेज (पासपोर्ट और वीजा) के बगैर घुस आए हैं या फिर वैध दस्तावेज के साथ तो भारत में आए हैं, लेकिन तय अवधि से ज्यादा समय तक यहां रुक गए हों। जिसमें बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान से आए शरणार्थियों जिनका धर्म हिंदू, बौद्ध, सिख, जैन, पारसी और ईसाई होना चाहिए।
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